मैं तरसता मधुमाष को
अमराई में तेरे कुंजन
ह्रदय से निकली तेरी आवाज़ को|
कभी सुना था तुम गाती हो
डाली- डाली पर इठलाती हो
मेरे लिए तुम होंठ हिला दो
मैं सुर-ताल बन समां जाऊं
तुम जो अपने होठों से विषपात्र लगालो
मैं तेरा अधर -रस समझ पी जाऊं |
तरुणा ! तुम मेरी हो उर्मिला
यौवन रूपी अमराई में कोकिला|
आओ न अब हम तुम साथ गाते हैं
जीवन संगीत गुनगुनाते हैं |
दोनों के स्वरों के अनुनाद से
आसमान गूंजेगा
इतिहास के पन्नों में
एक नया पृष्ठ जुङेगा |
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आपकी लिखी रचना “पांच लिंकों का आनन्द में” शनिवार 04 जुलाई 2020 को लिंक की जाएगी ….
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