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कोकिला

मैं तरसता मधुमाष को
अमराई में तेरे कुंजन
ह्रदय से निकली तेरी आवाज़ को|

कभी सुना था तुम गाती हो
डाली- डाली पर इठलाती हो
मेरे लिए तुम होंठ हिला दो
मैं सुर-ताल बन समां जाऊं
तुम जो अपने होठों से विषपात्र लगालो
मैं तेरा अधर -रस समझ पी जाऊं |

तरुणा ! तुम मेरी हो उर्मिला
यौवन रूपी अमराई में कोकिला|

आओ न अब हम तुम साथ गाते हैं
जीवन संगीत गुनगुनाते हैं |
दोनों के स्वरों के अनुनाद से
आसमान गूंजेगा
इतिहास के पन्नों में
एक नया पृष्ठ जुङेगा |

    
    
    
    
    
    

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