में प्रकाशित किया गया था हिंदी कविताएं

मेरा हिन्दुस्ताँ तूमसे जुदा है

हमा हमाक़त हमा जहालत
हर ज़ेहन अब यां ग़फ़लतजादा है
हर दिल यूंही नफरत-भरा है।

जो जितना गा़फ़िल है यहां पे
तल्ख़ उतनी ही उसकी जुबां है
अंधेर है नगरी
चाहे चराग़ाँ जला लो
अन्धों को छोड़ो
और कानों में ढुंढो
मिलता यां यक दाना कहाँ है।

जिन्हें नाज़ है
उनसे कहता रहुँगा
ग़लतफ़हमी है एक झूठ हैं सारे
ज़िन्दगी तूम्हारी जिसमें ख़्वाबीदा है
होगा तूम्हारे ये ख्वाबों का हिंदूस्ताँ
मेरा हिन्दुस्ताँ तूमसे जुदा है।

चित्र सौजन्य: Outlook