कुतूहल है मन में नदी को जानने की
वो जिस रास्ते से जा रही
उस पथ को पहचानने की |
आखिर ये नदी किधर मुङेगी
किसके अरमानों पर पानी फेरेगी
कितने रेत के घङौंदों को तोङेगी |
किसकी ना जाने किस्मत बनेगी
किसकी ओर दौङती ये जाएगी
किसके पैरों तले से ज़मीं खिसकाएगी |
नदी के तल की क्या किस्मत
उन्हें भिंगा वो जाती है
नदी के तट की हाय क्या किस्मत
मुस्काके लुभा वो जाती है |
नदी में उठी उर्मि
नदी का रास्ता हैं मोङती
अनजाने में ये लहरें
सारे जग को हैं झकझोरती |
सम्पूर्ण नद्यपान की पिपासा लिए
वो इधर आएगी की दिलासा लिए
सारा जग किनारे बैठा है
आभाष होता है काल
प्यासे जग से ऎंठा है |
कुछ जो नदी में स्नान के इच्छूक हैं
सोतों और झीलों में
नदी के हाव-भाव को तलाशते हैं |
इनमे कुछ निषाद तो
इस नदी की मछलियों को
इनके सोतों में फांसते हैं |
न जाने ये अभिमानी किसके सपने संजोए है
अनजाने में किस-किस के मन को भिंगोए है |
सागर से मिलना तो इसका निश्चित है
क्या इसी में इसका अंत निहित है ?
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivs 3.0 Unported License.